सकल रघुवंशी समाज, आरोन द्वारा श्री परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में ब्राह्मण समाज के चल समारोह का भव्य स्वागत

KAMAL KUSHWAH EDITOR IN CHIEF Ksarkari.com
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आरोन, 30 अप्रैल 2025: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पूरे देश में भगवान परशुराम जयंती का पर्व बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर मध्य प्रदेश के आरोन शहर में सकल रघुवंशी समाज ने ब्राह्मण समाज द्वारा आयोजित भव्य चल समारोह का स्वागत-सत्कार कर एक अनूठी मिसाल कायम की। इस समारोह में समाज के सभी वर्गों ने एकजुटता और भाईचारे का परिचय देते हुए भगवान परशुराम के प्रति अपनी आस्था और निष्ठा को प्रदर्शित किया। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि सामाजिक समरसता और एकता का भी प्रतीक बना।


परशुराम जयंती का महत्व

भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। स्कंद पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार, उनका जन्म त्रेतायुग में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को प्रदोष काल में हुआ था। परशुराम को एक ब्राह्मण योद्धा के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए अनेक युद्ध लड़े। उनकी वीरता, धर्मनिष्ठा और तपस्या की कहानियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। परशुराम जयंती का पर्व विशेष रूप से ब्राह्मण समाज द्वारा उत्साह के साथ मनाया जाता है, क्योंकि भगवान परशुराम का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।



इस पर्व पर लोग भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना करते हैं, उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न आयोजन करते हैं। आरोन में इस बार का आयोजन विशेष रूप से यादगार रहा, क्योंकि इसमें सकल रघुवंशी समाज और ब्राह्मण समाज ने मिलकर एकता और समन्वय का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।


चल समारोह का भव्य आयोजन

आरोन में ब्राह्मण समाज द्वारा श्री परशुराम जयंती के अवसर पर आयोजित चल समारोह शहर के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरा। इस समारोह में बड़ी संख्या में विप्रजन (ब्राह्मण समाज के लोग) शामिल हुए। समारोह की शुरुआत भगवान परशुराम के रथ से हुई, जिसमें उनकी दिव्य छवि को सुसज्जित किया गया था। रथ को फूलों और रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाया गया था, जो देखने में अत्यंत मनमोहक लग रहा था। रथ के साथ चल रहे भक्तगण भक्ति भजनों और जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे थे, जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया।


चल समारोह में शामिल विप्रजनों ने परंपरागत वेशभूषा धारण की थी। कई लोग भगवान परशुराम के प्रतीकात्मक हथियार फरसा जो उनकी वीरता और शक्ति का प्रतीक है। समारोह के दौरान भक्ति संगीत और ढोल-नगाड़ों की धुन पर लोग झूमते नजर आए। यह दृश्य न केवल धार्मिक उत्साह को दर्शा रहा था, बल्कि सामुदायिक एकता और उत्सव के भाव को भी उजागर कर रहा था।


सकल रघुवंशी समाज द्वारा स्वागत-सत्कार

सकल रघुवंशी समाज, आरोन ने इस चल समारोह का स्वागत करने के लिए विशेष तैयारियां की थीं। जैसे ही समारोह शहर के प्रमुख चौराहे पर पहुंचा, रघुवंशी समाज के सदस्यों ने पुष्प वर्षा के साथ विप्रजनों का स्वागत किया। यह पुष्प वर्षा न केवल एक स्वागत का प्रतीक थी, बल्कि दोनों समुदायों के बीच प्रेम और सम्मान का भी संदेश दे रही थी।


स्वागत समारोह की अगुवाई ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष श्री विष्णु प्रसाद जी ने की। सकल रघुवंशी समाज के प्रतिनिधियों ने श्री विष्णु प्रसाद जी का माल्यार्पण कर उनका अभिनंदन किया। इसके बाद, रथ में विराजमान भगवान परशुराम की छवि पर भी माल्यार्पण किया गया। इस अवसर पर उपस्थित सभी समाजजनों ने एक साथ मिलकर भगवान परशुराम की आरती उतारी, जिसने वातावरण को और अधिक पवित्र और भक्तिमय बना दिया।


सामाजिक एकता का प्रतीक

इस आयोजन की सबसे खास बात थी विभिन्न समुदायों का एक मंच पर आना। सकल रघुवंशी समाज और ब्राह्मण समाज के इस संयुक्त प्रयास ने सामाजिक समरसता और एकता का संदेश दिया। इस अवसर पर समाज के वरिष्ठजनों ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि भगवान परशुराम का जीवन हमें धर्म, कर्म और एकता का पाठ पढ़ाता है। उनके अनुसार, इस तरह के आयोजन समाज में आपसी भाईचारा और सहयोग की भावना को मजबूत करते हैं।


युवाओं की भागीदारी भी इस आयोजन की एक प्रमुख विशेषता रही। युवा वर्ग ने न केवल आयोजन में सक्रिय रूप से भाग लिया, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से इस समारोह की झलकियां भी साझा कीं। इससे न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि व्यापक स्तर पर भी इस आयोजन की चर्चा हुई।


भगवान परशुराम की शिक्षाएं और प्रासंगिकता

भगवान परशुराम का जीवन आज भी प्रासंगिक है। वे न केवल एक योद्धा थे, बल्कि एक तपस्वी और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण भी थे। उनकी कहानियां हमें सिखाती हैं कि धर्म और सत्य के लिए किसी भी हद तक जाना उचित है। परशुराम जयंती का यह पर्व हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेने और समाज में धर्म और नैतिकता को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।


इस अवसर पर आयोजित समारोह में वक्ताओं ने भगवान परशुराम के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का वध किया था, जो उनकी धर्मनिष्ठा और आज्ञाकारिता को दर्शाता है। हालांकि, यह घटना जटिल थी, लेकिन इसके पीछे उनका उद्देश्य धर्म की रक्षा करना था। इसके अलावा, परशुराम ने सहस्त्रार्जुन जैसे अत्याचारी क्षत्रियों का संहार कर धर्म की पुनर्स्थापना की थी।


आयोजन का प्रभाव

इस चल समारोह और स्वागत समारोह का प्रभाव न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी देखा गया। यह आयोजन समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने में सफल रहा। स्थानीय लोगों ने इस आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के प्रयास समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इसके अलावा, इस आयोजन ने युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों से जोड़े रखने में भी मदद की। युवाओं ने भगवान परशुराम की कहानियों और उनके जीवन के मूल्यों को समझने का प्रयास किया, जो उनके लिए प्रेरणादायक रहा।


निष्कर्ष

सकल रघुवंशी समाज, आरोन द्वारा श्री परशुराम जयंती के अवसर पर ब्राह्मण समाज के चल समारोह का स्वागत-सत्कार एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक आयोजन रहा। इस समारोह ने न केवल भगवान परशुराम के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रदर्शित किया, बल्कि सामाजिक एकता और समरसता का भी संदेश दिया। भगवान परशुराम की शिक्षाएं और उनके जीवन के मूल्य आज भी हमें धर्म, कर्म और एकता का पाठ पढ़ाते हैं। इस तरह के आयोजन समाज में सकारात्मक बदलाव लाने और विभिन्न समुदायों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 


आरोन के इस आयोजन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब समाज एकजुट होकर किसी कार्य को करता है, तो उसका प्रभाव दूर-दूर तक जाता है। यह आयोजन न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना और लोगों को एकता और भाईचारे के लिए प्रेरित किया।

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