नई दिल्ली, 30 अप्रैल 2025: भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित निर्णय लेते हुए देश में जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया है। केंद्रीय म #कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि आगामी जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना भी आयोजित की जाएगी। यह फैसला लंबे समय से विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों और विभिन्न समुदायों की मांग को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस कदम से देश की सामाजिक-आर्थिक नीतियों, आरक्षण व्यवस्था, और संसाधनों के वितरण में पारदर्शिता और समानता लाने की उम्मीद जताई जा रही है।
जातिगत जनगणना का महत्व
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में जाति सामाजिक संरचना का एक अभिन्न हिस्सा रही है। हालांकि, जाति आधारित भेदभाव और असमानता को खत्म करने के लिए संविधान और विभिन्न कानूनों के माध्यम से प्रयास किए गए हैं, फिर भी सामाजिक और आर्थिक असमानताएं बनी हुई हैं। जातिगत जनगणना के माध्यम से सरकार का लक्ष्य विभिन्न जातियों की जनसंख्या, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार, और अन्य महत्वपूर्ण मापदंडों के बारे में विस्तृत आंकड़े एकत्र करना है। ये आंकड़े नीति निर्माण, संसाधन आवंटन, और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "जातिगत जनगणना का उद्देश्य देश के हर वर्ग को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप अवसर प्रदान करना है। यह कदम सामाजिक समावेशन और समानता को बढ़ावा देगा।
लंबे समय से थी मांग
जातिगत जनगणना की मांग भारत में दशकों पुरानी है। 2011 की जनगणना में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत आंकड़े एकत्र किए गए थे, लेकिन वे सार्वजनिक नहीं किए गए। इसके बाद से विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, और राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे लोकसभा चुनाव 2024 में एक प्रमुख मुद्दा बनाया था और इसे सामाजिक न्याय का आधार बताया था।
विपक्ष के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी हाल के वर्षों में जातिगत जनगणना के प्रति सकारात्मक रुख दिखाया था। आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी सुनील आंबेकर ने 2024 में कहा था कि यदि यह राष्ट्रीय एकीकरण और कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए हो, तो संगठन इसका समर्थन करता है।
Cabinet Briefing by Union Minister @AshwiniVaishnaw @PIB_India https://t.co/LZ0WL9ipiW
निर्णय की पृष्ठभूमि
यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है, जब देश में सामाजिक और राजनीतिक तनाव अपने चरम पर है। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद विपक्षी दलों की बयानबाजी और सरकार पर बढ़ते दबाव ने इस फैसले को और प्रासंगिक बना दिया। इसके अलावा, 2021 की जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित हो गई थी, जिसके चलते देश अभी भी 2011 के आंकड़ों पर निर्भर है। अब 2025 में शुरू होने वाली जनगणना और इसके साथ होने वाली जातिगत जनगणना से आंकड़ों को अद्यतन करने की प्रक्रिया तेज होगी।
सूत्रों के अनुसार, सरकार ने इस फैसले से पहले विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया। एक समिति का गठन किया जा सकता है, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, ताकि इस प्रक्रिया को पारदर्शी और सर्वसम्मति पर आधारित बनाया जा सके।
कैसे होगी जातिगत जनगणना
जातिगत जनगणना के लिए विशेष प्रश्नावली तैयार की जाएगी, जिसमें परिवार के मुखिया की जाति, उप-जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा स्तर, और रोजगार की स्थिति जैसे सवाल शामिल होंगे। इसके अलावा, संप्रदाय से संबंधित जानकारी भी एकत्र की जा सकती है, जैसा कि कुछ रिपोर्ट्स में संकेत दिया गया है। यह प्रक्रिया 2025 में शुरू होगी और इसके आंकड़े 2026 तक प्रकाशित होने की उम्मीद है।
जनगणना का कार्य रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा किया जाएगा। आधुनिक तकनीकों, जैसे डिजिटल डेटा संग्रह और विश्लेषण, का उपयोग करके इस प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाया जाएगा। साथ ही, डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे।
संभावित प्रभाव
जातिगत जनगणना के कई सकारात्मक और कुछ संभावित चुनौतीपूर्ण प्रभाव हो सकते हैं। सकारात्मक पक्ष यह है कि यह सरकार को विभिन्न समुदायों की वास्तविक स्थिति का आकलन करने में मदद करेगा। उदाहरण के लिए, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी), और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को और प्रभावी बनाया जा सकेगा।
इसके अलावा, संसाधनों का समान वितरण, शिक्षा और रोजगार के अवसरों में सुधार, और सामाजिक असमानता को कम करने में यह डेटा महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। नीति निर्माताओं को यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन से समुदाय सबसे अधिक वंचित हैं और उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जातिगत जनगणना सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती है। विभिन्न जातियों के बीच प्रतिस्पर्धा और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, खासकर यदि कुछ समुदायों को लगता है कि उनके हितों की अनदेखी की जा रही है। इसके अलावा, इस डेटा का राजनीतिक दुरुपयोग भी एक चिंता का विषय है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
इस फैसले का विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने स्वागत किया है। बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इसे "ऐतिहासिक फैसला" करार दिया और कहा कि यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है। कांग्रेस ने इसे अपनी मांग की जीत बताया और कहा कि यह देश के 90% लोगों को उनकी हिस्सेदारी दिलाने में मदद करेगा।
हालांकि, कुछ आलोचकों का कहना है कि सरकार को इस प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और गैर-राजनीतिक रखने के लिए विशेष सावधानी बरतनी होगी। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कुछ नेताओं को आशंका है कि यह फैसला उनके पारंपरिक वोटर बेस, विशेष रूप से सवर्ण समुदायों, को नाराज कर सकता है।[]()
आगे की राह
जातिगत जनगणना का यह निर्णय भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह देश में सामाजिक समावेशन, समानता, और न्याय को बढ़ावा दे सकता है। हालांकि, इसके लिए सरकार को सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
2025 में शुरू होने वाली यह जनगणना न केवल भारत की जनसंख्या के आंकड़ों को अपडेट करेगी, बल्कि देश की सामाजिक संरचना को समझने और उसे और समावेशी बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह फैसला भारत के भविष्य को कैसे आकार देता है।
निष्कर्ष
मोदी सरकार का जातिगत जनगणना कराने का फैसला एक साहसिक और दूरदर्शी कदम है। यह न केवल सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा, बल्कि नीति निर्माण और संसाधन आवंटन में भी पारदर्शिता लाएगा। हालांकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे कितनी निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाता है। भारत जैसे जटिल और विविधतापूर्ण समाज में यह कदम एक नई शुरुआत हो सकता है, बशर्ते इसे सही दिशा में ले जाया जाए।